Tuesday, March 27, 2018

अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस और ‘मुग़ल-ए-आज़म’



आज अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस है। इसका प्रारम्भ 1961 में इंटरनेशनल थियेट्रिकल इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी। तब से यह प्रति वर्ष 27 मार्च को विश्वभर में फैले नेशनल थियेट्रिकल इंस्टीट्यूट के विभिन्न केंद्रों में तो मनाया ही जाता हैरंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओंसमूहों और इसके प्रशंसकों द्वारा भी इस दिन को विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज के इस विशेष दिन चर्चा उस खास नाटक की जिसने रंगमंच से रंगमंच का एक चक्र पूरा किया, और जिसका साक्षी बनना एक अविस्मरणीय अनुभव था।
उर्दू नाटककार इम्तियाज़ अली ताज ने सलीम और अनारकली के प्रेम की दंतकथा को 1922 में एक नाटक का रूप दिया, जिसे जल्द ही रंगमंच पर भी जगह मिल गई। इसके बाद अर्देशिर ईरानी ने 1928 में एक मूक फिल्म 'अनारकली' बनाई। बोलती फिल्मों का दौर शुरू होने पर 1935 में इसका पुनर्निर्माण भी किया गया। 20 वी सदी के पूर्वार्ध की इन पहलों के बाद आज 21 वीं सदी के पूर्वार्ध में फ़िरोज़ अब्बास ख़ान पुनः इसे रंगमंच पर लेकर आए।
वही संवाद, वही गीत (6 गानों के अलावा दो नई ठुमरियां भी जोड़ी गई हैं), वही शाही आन-बान-शान; मगर इस बार माध्यम अलग। उस भव्य परिदृश्य को रंगमंच पर उतरना कितना कठिन रहा होगा जिसे हकीकत में उतरने के लिए एक जुनून ही चाहिए रहा होगा। और फिरोज खान को यह जुनून मिला अपने सहयोगियों में भी। इस शाहकार को नाटक के रूप में प्रस्तुत करने का विचार जब नेशनल सेंटर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट (एनसीपीए) एनसीपीए के सामने रखा तो वे तैयार हो गए, फ़िर मूल सिनेमा के निर्माता शापूरजी पालोनजी का भी साथ मिल गया। 1960 में बनी इस फिल्म को शापूरजी पालोनजी कंपनी ने ही आर्थिक मदद दी थी। इसी कंपनी ने इसके रंगीन संस्करण की प्रस्तुति को भी आर्थिक सहायता दी थी।
वर्ष 2011 में ड्रामा डेस्क अवॉर्ड से नवाजे जा चुके डेविड लांडेर ने नाटक को आकर्षक और भव्य बनाने के लिए इसमें कमाल के लाइटिंग इफेक्ट्स दिए हैं। बेहतरीन ग्राफिक्स प्रोजेक्शन और प्राप्स की सहायता से रेगिस्तान, महल, क़ैदखाने, बुर्ज, बाग, जंग के मैदान यहां तक कि शीश महल को भी साकार कर दिया गया है। मडोना कॉन्सर्ट्स में प्रोजेक्शन डिजाइन देने वाले सुप्रसिद्ध जॉन नरौन इस नाटक के प्रोजेक्शन डिजाइनर हैं। कई बॉलीवुड फिल्मों और टीवी सीरियल्स में प्रॉडक्शन डिजाइनर रह चुके नील पटेल इस नाटक में प्रॉडक्शन डिजाइनर हैं।
इस नाटक में टेलीविजन इंडस्ट्री के 17 कलाकार हैं। इसमें शहँशाह अक़बर की भूमिका निसार खान ने, जोधा की भूमिका सोनल झा ने, अनारकली की भूमिका नेहा सरगम तथा सलीम का किरदार धनवीर सिंह निभा रहे हैं। संगीत 'गांधी माई फादरफिल्म के म्यूजिक कंपोजर पियूष कनोजिया का है।
नाटक में वे सभी गीत शामिल किए गए हैं जो फिल्म में थे। इन पर नर्तकों को बेंगलुरु की शास्त्रीय नृत्यांगना और प्रशिक्षक मयूरी उपाध्याय ने कथक का प्रशिक्षण दिया है। वस्त्र सज्जा प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर मनीष मलहोत्रा की है। सभी
आठ़ गानों का नाटक के मंचन के दौरान प्रस्तुति बिल्कुल लाइव है। ऐसे में अभिनेताओं के जज़्बे और समर्पण को बखूबी समझा जा सकता है। 
नाटक ने संवाद और गीत भले फिल्म से लिए हों मगर शुरू से अंत तक यह आपको अपनी जीवंतता से बंधे रखता है। आप उस दौर के साक्षात प्रत्यक्षदर्शी से होते हैं। बाहर निकलते-निकलते यह नाटक आपके दिल में अपनी एक खास जगह बना चुका होता है। शायद यही कारण है कि पायरेसी और दर्शकों की कमाई और उनकी पसंद में गिरावट का रोना रोते दावों के बीच न सिर्फ इस नाटक की 500-10000 तक के बीच की दर की टिकटें पूरी बिकती हैं बल्कि दर्शकों की लंबी क़तार भी नजर आती है।
रंगमंच पर लाईव प्रस्तुतियाँ एक चुनौती होती हैं। ध्यान से देखें तो आप कुछ त्रुटियाँ पा भी सकते हैं मगर वो इसकी उत्कृष्टता के आड़े नहीं आती। सूत्रधार मूर्तिकार के माध्यम से यह नाटक कई बिंदुओं पर आपको अपने वर्तमान परिदृश्यों पर भी सोचने को बिन्दु देता है। 300 लोगों की इस टीम में हर प्रमुख कलाकार की किसी स्थिति में अनुपलब्धता की स्थिति में उसके प्रतिस्थापन्न को भी तैयार रखा गया है।
इस नाटक की प्रशंसा के लिए शब्दों की भले कमी पड़ जाए आपके दिलों में इसकी जगह की कोई कमी न होगी। इसे देखना एक जादुई दुनिया से गुजरने का अहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। इस नाटक ने थियेटर ही नहीं प्रस्तुति के सभी माध्यमों के समक्ष एक स्तर, एक सार्थक रचना प्रस्तुत करने की चुनौती पेश की है। एक 'मुग़ल-ए-आज़म के तो लगभग 60 साल बाद यह पहल हुई है, देखें अगली उल्लेखनीय पहल के लिए कितनी प्रतीक्षा करनी पड़े!   
रंगमंच दिवस पर कामना कि लोग अच्छे नाटकों से जुड़ें और इससे जुड़े लोगों का उत्साहवर्धन हो...




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